Speaker Information in Hindi : टेक्निकल भाषा मे स्पीकर एक साऊंड डिवाइस है। किसी भी बड़ी जगह पर साउंड पहुंचाने के लिए स्पीकर्स यह डिवाइस कार्य में आता है। बस कंप्यूटर के साथ यह डिवाइस कार्य नहीं करता है, हर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में स्पीकर यह आउटपुट डिवाइस की तरह मिलता है। आज इस लेख के माध्यम से हम स्पीकर क्या है, स्पीकर का इतिहास, स्पीकर कैस कार्य करता है, स्पीकर के प्रकार, स्पीकर के गुण (स्पेसिफिकेशन) जानेंगे।
Speaker Information in Hindi (स्पीकर क्या है?)
किसी भी कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के साथ साउंड आउटपुट के लिए जो यंत्र इस्तेमाल किया जाता है उसे स्पीकर्स कहते है। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में साउंड निर्माण करने के लिए एक साउंड कार्ड होता है। इसी साउंड कार्ड के माध्यम से साउंड के लिए सिग्नल बनाकर उसे स्पीकर्स तक भेजा जाता है। स्पीकर्स इस सिग्नल को ध्वनि लहरों में बदल देता है।
स्पीकर्स का इस्तेमाल मात्र कंप्यूटर के साथ ही नहीं कई सारे इलेक्ट्रॉनिक साउंड निर्माण करने वाले उपकरणों के साथ होता है। इसमें एम्प्लीफायर जैसे साउंड की तीव्रता बढ़ाने वाले उपकरण भी शामिल है।
स्पीकर्स में मुख्य रूप से एनालॉग और डिजिटल दोनों सिग्नल को ध्वनि में बदलने की क्षमता होती है। कंप्यूटर या किसी भी उपकरण द्वारा अगर एनालॉग सिग्नल दिया जाता है तो उसे स्पीकर्स साउंड में बदल देते है। इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रो और मैग्नेटिक लहरों को ध्वनि लहरों में बदलना कहते है। अगर सिग्नल डिजिटल स्वरूप में है तो उसे स्पीकर्स द्वारा पहले एनालॉग में बदलकर फिर ध्वनि लहरों में भेजा जाता है।
स्पीकर का इतिहास (History of Speaker)
स्पीकर में लाउड स्पीकर से शुरुआत हुई थी। कंप्यूटर की खोज के पहले ही लाउड स्पीकर की खोज हुई थी। 1861 में जोहान फिलिप रिस नाम के व्यक्ति ने दुनिया का पहला लाउड स्पीकर एक टेलीफोन में लगाया था। उसके बाद इस लाउड स्पीकर को एलेक्जैंडर ग्राहम बेल नाम के साइंटिस्ट ने अपने खोज किए गए टेलिफोन के साथ पेटेंट करवा लिया था।
1981 साल में कंप्यूटर निर्माता कंपनी IBM ने अपने कंप्यूटर के स्क्रीन पर ही स्पीकर इंस्टॉल करके दिया था। इसलिए इनबिल्ट स्पीकर की शुरुआत का श्रेय IBM को जाता है। उसके बाद 1991 में अबिनावन पुराचीदास ने कंप्यूटर सिस्टम के लिए बाहरी स्पीकर की खोज की थी।
स्पीकर कैसे कार्य करते है? (How do speakers work)
किसी भी स्पीकर को बनाने में मैग्नेट, एक कपड़ा और शंकु के आकार का यूनिट जरूरी है। इसके ऊपर की सतह को मेटल से या फिर लकड़ी से बनाया जा सकता है।
स्पीकर के नीचे लगाए जाने वाले मैग्नेट में एक बीच में छेद होता है। इसी मैग्नेट के ऊपर स्पीकर का सिस्टम लगाया जाता है। मैग्नेट के ठीक ऊपरी भाग पर वॉइस कॉइल नाम की एक कॉइल लगाई जाती है। इस कॉइल को टेंपररी मैग्नेट की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इसके ऊपर काले रंग के एक कपड़े को डायाफ्राम के साथ जोड़ा जाता है। यह डायाफ्राम ही शंकु आकार का होता है।
किसी भी उपकरण के साथ स्पीकर को जोड़े जाने पर उस डिवाइस से इलेक्ट्रिक सिग्नल आते है। इस प्रकार के सिग्नल को वॉइस कॉइल के अंदर भेजने से कॉइल में कंपन आने के कारण डायफ़्राम भी कंपित होता है। इसी से ध्वनि निर्माण हो जाता है। भेजे जा रहे इलेक्ट्रिक सिग्नल को उस उपकरण की माध्यम से पहले ही बढ़ाकर भेजा जाता है।
स्पीकर के प्रकार (Types of speakers)
- सबवूफर्स
कंप्यूटर सिस्टम के साथ और कभी कभी कार के ऑडियो सिस्टम में आपको यह बुमिंग बास वाले सबवूफर्स देखने को मिल सकते है। सभी होम थिएटर में सबवूफर्स प्रकार के स्पीकर्स का इस्तेमाल किया जाता है।
- कंप्यूटर स्पीकर्स
यह उस समय से चलता आ रहा है जब से कंप्यूटर के अंदर ही स्पीकर्स दिए जाते थे। लेकिन उसके बाद इसी कैटेगरी को बाहरी कंप्यूटर स्पीकर्स में बदला गया। अब ऑडियो जैक या फिर USB पोर्ट के साथ यह स्पीकर्स कंप्यूटर में जोड़े जाते है।
- ब्ल्यूटूथ स्पीकर्स
ब्ल्यूटूथ स्पीकर्स किसी नॉर्मल स्पीकर्स की तरह ही है। बस इस प्रकार के स्पीकर्स में आपको किसी भी वायर के साथ अपने डिवाइस को कनेक्ट नहीं करना होता। इस प्रकार के स्पीकर्स आज के समय में सभी जगह पर इस्तेमाल हो रहे है। बैटरी के साथ आने वाले ब्ल्यूटूथ स्पीकर्स को बाहर घूमने के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है।
- फ्लोर स्टैंडिंग स्पीकर्स
लगभग 4 फिट की हाइट में आने वाले यह स्पीकर्स बहुत सारे बड़े हॉल में हमे दिखाई देते है। इन स्पीकर्स को जमीन पर खड़ा या फिर स्टैंड पर लगाकर ऊंचाई पर खड़ा किया जा सकता है। इस प्रकार के स्पीकर्स में आपको बड़े आकर के साउंड दिए जाते है।
इसके साथ स्पीकर्स के बुकशेल्फ स्पीकर्स, इन वॉल स्पीकर्स, सीलिंग स्पीकर्स, सैटलाइट स्पीकर्स और आउटडोर स्पीकर्स जैसे प्रकार भी है।
स्पीकर के स्पेसिफिकेशन (Specifications of Speaker)
किसी भी स्पीकर को लेने से पहले उसके बारे में जानकारी होने आवश्यक है। नीचे दिए गए स्पेसिफिकेशन के आधार पर स्पीकर को रेटिंग दी जाती है।
- फ्रिक्वेंसी रिस्पॉन्स : किसी स्पीकर के माध्यम से कम से कम और ज्यादा से ज्यादा कितनी फ्रिक्वेंसी को सुना जा सकता है। इसको स्पीकर लेते समय फ्रिक्वेंसी रिस्पॉन्स कहा जाता है। जिस स्पीकर का फ्रिक्वेंसी रिस्पॉन्स रेंज अधिक होगा वह स्पीकर आपके लिए सही है।
- टोटल हारमोनिक डिस्टॉर्शन : इस फैक्टर के माध्यम से स्पीकर एंप्लीफिकेशन के दौरान कितनी मात्रा में डिस्टॉर्शन बनाता है यह काउंट किया जाता है। जितना कम THD होगा उतना अच्छा स्पीकर माना जाता है।
- वॉट्स (Watts): किसी भी स्पीकर के द्वारा अधिकतम लेवल पर किए जाने वाले एंप्लीफिकेशन को वॉट्स में गिना जाता है।
स्पीकर के बड़े ब्रांड्स (Top brands of speakers)
पूरे विश्व में बहुत सारे स्पीकर निर्माता ब्रांड है लेकिन उनमें से कुछ टॉप ब्रांड्स को नीचे लिस्ट कर रहे है।
- सोनोस (Sonos)
- बोस (Bose)
- जेबिएल (JBL)
- सोनी (Sony)
- अल्टीमेट इयर्स (Ultimate Ears)
- एंकर (Anker)
- एप्पल (Apple)
निष्कर्ष
स्पीकर के बिना किसी इवेंट में नाच गाना लगभग नामुमकिन ही है। अपने कानों को सुनाई देने वाली हर एक मधुर आवाज हम स्पीकर के बिना सुन ही नहीं सकेंगे। उम्मीद है आपको Speaker in Hindi लेख के माध्यम से स्पीकर के बारे में सभी जानकारी हासिल हुई है। अगर आपके मन में कोई सवाल है तो जरूरी कमेंट बॉक्स में लिखे।
FAQs
स्पीकर्स की व्याख्या क्या है?
स्पीकर्स यह एक कंप्यूटर सिस्टम का आउटपुट डिवाइस है जो इलेक्ट्रिक सिग्नल को साउंड सिग्नल में बदल देता है।
स्पीकर्स का कार्य क्या है?
किसी भी इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के साथ जुड़कर उसके अंदर प्रोसेस किए गए इलेक्ट्रिक सिग्नल को साउंड एनर्जी में बदलाव करना ही स्पीकर का कार्य है।
स्पीकर्स का इस्तेमाल कहा पर होता है?
कंप्यूटर सिस्टम के साथ, मोबाइल में, किसी इवेंट में म्यूजिक बजाने के लिए स्पीकर्स का इस्तेमाल किया जाता है।
स्पीकर्स की खोज किसने की थी?
जोहान फिलिप रिस जी ने स्पीकर की शुरुआत करने के बावजूद भी, पेटेंट अलेक्सांडर ग्राहम बेल के नाम पर होने के कारण ग्राहम बेल को ही स्पीकर की खोज करने वाले इंसान के रूप में देखा जाता है।
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